Friday, August 05, 2005

सॉफ्टवेयर महिमा

हाल-फिलहाल में ही एक मित्र ने पूछा कि "अभी तक सॉफ्टवेयर से मन नहीं भरा?". उस मूढ की मूर्खता पर मुझे बहुत ही हंसी आई और मन में यह सूझा - "मूर्ख हैं वो जो सॉफ्टवेयर को बदनाम करते हैं, यह तो वह नौकरी है जहाँ सब विश्राम करते हैं" (विद्वजन जान ही गये होंगे कि यह मुहावरा कहाँ से उठाया गया है). शायद यही एक ऐसी नौकरी होगी जहाँ दिन भर कम्प्युटर (संगणक) पर गेम्स खेलने के इतने पैसे मिलते हैं कि आप घर पर खेलने के लिये भी गेम्स खरीद सकते हैं. मतलब पूरी ज़िन्दगी सेट! दिन में दफ्तर में खेलो, रात में घर में खेलो -- किंचित यही कारण है कि भारतीय जन इस क्षेत्र में बहुत नाम कमा रहे हैं.

अगर यह सब सुन कर आप इस मुग़ालते में हों कि इस नौकरी में कुछ करने को नहीं, तो इस शंका का भी निवारण किये देते हैं. अब काम का तो यह है कि लगभग सभी सॉफ्टवेयर कम्पनियों में हर हफ्ते conference call करवाने का प्रचलन है. इसमें होता यह है कि सभी ये शेखी बघारते हैं कि गत सप्ताह में उन्होंने क्या तीर मारे और आगामी सप्ताह के लिए क्या उम्मीदें लगाये बैठे हैं. तो हफ्ते भर का काम इस call के एक दिन पहले निपटाया जाता है. भई, जब तक काम में रोमांच ना हो, कैसा आनन्द? असल खतरों के खिलाडी तो वे होते हैं जो कि call में bluff मारते हैं. तात्पर्य यह कि काम किया नहीं पर call में घोषित कर दिया. मतलब अगले हफ्ते दूना रोमांच!

सॉफ्टवेयर बनाने के लिए एक पूरा कार्यक्रम निर्धारित होता है. शुरु के कुछ महिने तो मैनेजर तथा अन्य ऊपरी लोग दुनिया भर के कागज़ काले करते हैं. पहले एक functional specification तैयार होता है, जिसे हर हफ्ते निरंतर बदलते रहते हैं. इसके बाद नम्बर आता है design document का, बोले तो कि आखिर क्या करना है और कैसे करना है. यह एक दफ़ा निर्धारित हुआ तो अब सब बैठ के इनकी चीर-फाड करते हैं. फिर से कागज़ काले किये जाते हैं, फोन घुमाये जाते हैं, ई-मेल टपकायीं जाती हैं. इसी सब में प्रकाशन-तिथि (release date) नज़दीक आ जाती है. यह शब्द किसी भी सॉफ्टवेयर वाले की नानी के इन्तक़ाल के लिए क़ाफी है! जब कोड लिखने के लिए गिने-चुने दिन ही रह जाते है, तब कहीं जाके प्रोगामर लोग की पूछ होती है. इस अवस्था में अब अपनी सहूलियत से पूरी कार्य-प्रणाली (functionality) उलटी-पलटी जाती है. बहुत से नौजवान कोडर लोगों को दफ़्तर में रातें काली करनी पडती हैं (जिसका बदला वो कम्पनी के पैसों पर पिज़्ज़ा खा कर निकालते हैं), बहुतों को तो कई-कई दिनों तक बिना ऑफिस में गेम्स खेले रहना पडता है! अन्त में जब किसी को भी और काम करने की श्रद्धा नहीं रहती, तब जो भी चूँ-चूँ का मुरब्बा तैयार होता है, उसी को बाज़ार में उतारा जाता है. सुनने में काफ़ी झन्झट का काम लगता है, पर ऐसा साल में बस १-२ दफा ही होता है.

पर जो सबसे बढिया बात है वो है आम जनता में सॉफ्टवेयर वालों के लिए इज़्ज़त. कभी रिश्तेदारों से मिलो तो यही कहते हैं कि - "बहुत काम होता होगा ना, काम से फुरसत कहाँ मिलती होगी?". और जब तन्ख्वाह कि सुनते हैं तो उनकी भी बाँछें खिल जाती हैं. आपकी छवि एक सुपर-स्टार से कम नहीं होती. हाँ कभी कोई अगर पूछ बैठे कि आखिर काम क्या करते हो तो समझाने में मुश्क़िल हो जाती है, पर फिर कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता.

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