Saturday, October 15, 2005

मैं हिन्दी में क्यों लिखता हूँ?

सच यही है कि मेरे हिन्दी ब्लॉग की शुरुआत के पीछे कौतूहल ही मुख्य भावना थी (मेरे स्कूल में भी एक भावना थी, वो फिर कभी). हिन्दिनी के टूल ने मुझे बहुत प्रभावित किया था और मेरा हिन्दी ब्लॉग एक किस्म का geek's show off ही था. पर फिर मैंने महसूस किया कि हिन्दी को मैं किस कदर "मिस" कर रहा था. बचपन में हिन्दी मेरा प्रिय विषय हुआ करता था - शैक्षिक सत्र के शुरु में ही मैं हिन्दी की पूरी पाठ्य-पुस्तक चाट जाता था; जब हम अपने चचेरे भाई-बहनों से मिलने जाते थे, तब मैं उनकी पाठ्यपुस्तकें भी पढ डालता था. अब हिन्दी ब्लॉग जगत के चलते मुझे एक और मौका मिला था अपने पसंदीदा विषय से फिर जुडने का. मुझे यह भी एहसास हुआ कि चूँकि हिन्दी मेरी मातृभाषा है, मैं अपने विचार, अपना हास्य इसमें बेहतर व्यक्त कर सकता हूँ. ऐसा कतई नहीं है कि अंग्रेज़ी से मुझे कोई ग़ुरेज़ है, वास्तव में तो अंग़्रेज़ी के विस्तार और गहराई से मैं बेहद प्रभावित हूँ. पर हिन्दी के साथ जो बचपन से जुडाव है, जो रोज़मर्रा में प्रयोग करते हैं और जो रस हिन्दी में आता हैं, उसका नशा अलग ही है.

इतना सब पढने के बाद यही सोच रहे होंगे कि लम्बी-लम्बी फेंक रहा है, तो यह भी बता देता हूँ कि मैं हिन्दी में नियमित रूप से क्यों नहीं लिखता. दरअसल, मेरे ३ ब्लॉग उपस्थित हैं. सबसे नियमित रूप से मेरा चित्र-चिठ्ठा छपता है, मेरा प्रयास रोज़ एक चित्र प्रकाशित करने का रहता है. फिर आता है मेरा अंग़्रेज़ी चिठ्ठा, वो करीब हफ्ते में २-३ दफ़ा अपडेट होता है. इस हिन्दी चिठ्ठे की आवृत्ति मासिक ही रह गयी है, परन्तु मैं इसको सुधारने की ओर प्रयत्नशील हूँ. मुख्य मुद्दा यही है कि हिन्दी ब्लॉग के लिए पहले हिन्दिनी टूल में लिखो, फिर copy-paste करो - थोडा भारी पड जाता है. आलस्य ही है जी, अब क्या कहें.

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