Friday, September 16, 2005

चुगलियाँ

(वी.वी.एस.लक्ष्मण की तर्ज़ पर वापसी कर रहा हूँ, उम्मीद है इस दफ़ा नियमित रहुँगा.)

बीते दिनों भारतीय क्रिकेट टीम एक और फाइनल में पिट गयी. नया ये नहीं है, नया ये है कि अब ICC ने शँका जताई है कि वह मैच फिक्स्ड हो सकता है. BCCI ने साफ नकार दिया है, भाई कौन पैसे देगा इनको हारने के लिये? ये काम तो ये कब से बिना पैसे लिये ही कर रहे हैं. आज-कल खेल चैनल्स के बीच बडी मार-काट मची है. अब नया ये चालू हुआ है कि जब भी कभी भारत का क्रिकेट मैच होता है, विरोधी चैनल छाँट-छाँट के पुराने मैच दिखाते हैं जहाँ भारत जीता हो. अब एक तरफ आपको पता है कि भारत जीतेगा, और दूसरी तरफ पक्का हारेगा तो साफ़ है कि आप कौनसा मैच देखेंगे. श्रीलंका के मुरलीधरन भी सट्टेबाज़ी वाले केस में शक़ के दायरे में हैं. कहते हैं आदित्य पाँचोली उनको दीपा बार ले गये थे, बार-बाला तर्रन्नुम खान से मिलवाने. अपने पाँचोली साब खुश थे कि इसी बहाने सही, इतने समय बाद किसी स्क्रीन पर तो दिखेंगे. सज-धज के TV स्टूडियो पहुँचे तो पता चला कि TV टीम उन्ही के घर गयी है. भागे-भागे घर पहुँचे तब तक मुरली का बयान आ चुका था, TV पर पाँचोली साब को भगोडा घोषित किया जा चुका था और पाँचोली साब को फिर से कोई कुत्ता भी नहीं पूछ रहा था.

भाजपा में आजकाल बेहद दिलचस्प कबड्डी चल रही है. खुराना साब ने लंगडी मारी आडवाणी को, खुद धूल चाट रहे हैं. २४ घण्टे के अन्दर-अन्दर लाइन पर आ गये और आडवाणी को अपनी सात पुश्तों का गुरु मान लिया. इसको कहते हैं थूक के चाटना. अब तो कसम से देश भर की गृहणियाँ भी सूरज ढले सास-बहू बकर की बजाये न्यूज़ पर उमा-खुराना ड्रामा देखना पसंद करती हैं. इसिलिये एकता कपूर ने नया धारावाहिक डाला है - कहानी ज़िन्ना की कसौटी की. मतलब जिन्ना साहब भी यही मलाल ले के अल्लाह को प्यारे हुये थे कि साला कोई पूछता ही नहीं. अब जाके उनकी रूह को भी सुकून मिला होगा की सरहद पार ही सही, लोग याद तो करते हैं. तब भी मेरे नाम पर बँटवारे हुये, अब भी मुल्क नहीं तो एक पार्टी तो बँटेगी ही बँटेगी.

तेल की कीमत और बढ गयी. अब सुना है कि तेन्डुलकर ने अपनी कर-मुक्त फेरारी वास्ते सरकार से कर-मुक्त पेट्रोल की माँग की है. हम तो अब बस पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल सूँघ कर ही जी बहलाते हैं, पर हमारे एक मित्र हैं, सुनते हैं उन्होंने अपनी शादी में कार लेने से मना कर दिया. बदले में पेट्रोल माँग लिया, भाई इन्वेस्टमेंट वास्ते. उनके ससुराल वाले बेचारे सडक पर आ गये हैं.

Comments:
आप लिखते रहें, नियमित. पाठक तो मिलेंगे ही. आज नहीं तो कल, क्योंकि इंटरनेट का यह कांटेंट तो रहना है अजर-अमर.

बाकी सब ठीक है.

वापसी की बधाई!
 
सही कहा...पाकिस्तानियों को मलाल है कि उनके पास सिर्फ़ एक जिन्ना था,एक दो और होते तो पिछ्ले युद्द करने की नौबत ही ना आती, छोड देते भारतीय राजनेताओ पर.इधर हिन्दुस्तानी सोचते थे, एक था उसने मरने के बाद इतना हंगामा खड़ा कर दिया, ज्यादा होते तो क्या होता?

वरुण भाई, अच्छा लिखे तो रोजाना लिखो तो मजा आ जाये, तुम्हारा ब्लाग लोगों का होम पेज ना बने तो कहना.
 
हिन्‍दी परिपत्र मण्‍डल में आपका स्‍वागत है। उम्‍मीद है कि आप इसी तरह नियमित तौर पर लिखते रहेंगे।
 
भैया तुम्हारा लिखा हुआ देखकर तो ऐसा लगता है कि "वक्रोक्ति " मे "पार्ट-टाइम पी.एच.डी." किया है ।

लिखते रहो क्योंकि इसमेे हमारे स्वाथ्य के लिये सब कुछ अच्छा है ।
 
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